निषाद समाज के बारे में

निषाद जाति भारतवर्ष की मूल एवं प्राचीनतम जातियों में से एक हैं। रामायणकाल में निषादों की अपनी अलग सत्ता एवं संस्कृति थी, एवं निषाद एक जाति नहीं बल्कि चारों वर्ण से अलग "पंचम वर्ण" के नाम से जाना जाता था। आदिकवि महर्षि बाल्मीकि, विश्वगुरू महर्षि वेद व्यास, भक्त प्रह्लाद और रामसखा महाराज श्रीगुहराज निषाद जैसे महान आत्माओं ने इस जाति सुशोभित किया है। स्वतंत्रता आन्दोलन में भी इस समुदाय के शूरवीरों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया, लेकिन आज इस समुदाय के लोंगो में वैचारिक भिन्नता के कारण समुदाय का विकास अवरुद्ध सा हो गया है। उप-जाति, कुरी, गौत्र के आधार पर समुदाय का विखंडन हो रहा है, फलतः समुदाय के सामाजिक, धार्मिक आर्थिक एवं राजनैतिक मान-मर्यादा में ह्रास हो रहा है। इसी वैचारिक भिन्नता का उन्मूलन एवं उप-जाति, कुरी, गौत्र के आधार सामाजिक विखराव को रोकने हेतु एक प्रयास किया जा रहा है। इसके माध्यम से हम अपने समुदाय के सभी सदस्यों को भाषा, क्षेत्र, उप-जाति, कुरी, गौत्र जैसे भेदभाव मिटाकर आपसी एकता को मजबूत करने का अनुरोध करते हैं।

निषाद समुदाय भाषा एवं क्षेत्र के अनुसार विभिन्न नामों से जाने जाते है , जैसे कश्यप,मल्लाह, बाथम,रायकवार इत्यादि।

भारतीय महाकाव्य में निषाद

Nishada (niśāda) भारतीय महाकाव्य महाभारत में वर्णित एक राज्य का नाम है। राज्य में एक ही नाम की एक जनजाति के थे। Mahabarata में, Nishadas पहाड़ियों और उनके निवास के लिए जंगलों है कि जनजातियों के रूप में उल्लेख कर रहे हैं। वे रग नामक एक राजा के साथ जुड़े हुए हैं क्रोध और द्वेष का गुलाम बन गया है, और हक से महरूम हो गया, जो (Saraswata किंगडम देखें)। ब्राह्मण ने उसे मार डाला। रग के वंशजों में से कुछ Nishadas बन गया है और कुछ अन्य लोगों के विंध्य पर्वतों (12,58) पर रहने वाले Mlechchhas, कहा जाता था। एकलव्य एक Nishada जनजाति के एक राजा था। उन्होंने एक बार द्वारका हमला किया, और लड़ाई में वासुदेव कृष्ण ने मार डाला था। यह राज्य भारत के राजस्थान राज्य के भीलवाड़ा में नाम संभवतः जिले में अरावली पर्वतमाला में स्थित था। एकलव्य के राज्य के अलावा कई अन्य Nishada राज्यों के थे। नल-दमयंती की एक 18 वीं सदी पहाड़ी चित्रकला Nishadha प्यार करता था और दमयंती विदर्भ राज्य की राजकुमारी से शादी की, जो मशहूर राजा नाला, का राज्य था। राज्य के राज्यक्षेत्र मध्य प्रदेश की वर्तमान दिन ग्वालियर जिले के आसपास के क्षेत्र के साथ पहचान की है। Nishadha Dasarna और कोशल के रूप में अच्छी तरह से विदर्भ के साथ के रूप में व्यापार मार्गों के माध्यम से जुड़ा था।

निषाद का इतिहास

- जन्म - महाभारत काल

- मृत्यु - यदुवंशी श्रीकृष्ण द्वारा छल से

- पिता - महाराज हिरण्यधनु

- माता - रानी सुलेखा

- बचपन का नाम - अभिद्युम्न ( अभय )

जीवन से शिक्षा -

1. अपने लक्ष्य के प्रति लगन होना

2. समस्याओँ से डट कर सामना करना

3. माता पिता और गुरू का आदर करना

4. मन लगाकर परिश्रम करना आदि आदि


एकलव्य निषाद वंश के राजा थे l निषाद वंश या जाति के संबंध मेँ सर्वप्रथम उल्लेख "तैत्तरीय संहिता" मेँ मिलता है जिसमेँ अनार्योँ के अंतर्गत निषाद आता है l "एतरेय ब्राह्मण" ग्रन्थ उन्हेँ क्रूर कर्मा कहता है और सामाजिक दृष्टि से निषाद को शूद्र मानता है l महाभारत काल मेँ प्रयाग (इलाहाबाद) के तटवर्ती प्रदेश मेँ सुदूर तक फैला श्रृंगवेरपुर राज्य एकलव्य के पिता निषादराज हिरण्यधनु का था l गंगा के तट पर अवस्थित श्रृंगवेरपुर उसकी सुदृढ़ राजधानी थी l उस समय श्रृंगवेरपुर राज्य की शक्ति मगध, हस्तिनापुर, मथुरा, चेदि और चन्देरी आदि बड़े राज्योँ के समकक्ष थी l निषाद हिरण्यधनु और उनके सेनापति गिरिबीर की वीरता विख्यात थी l निषादराज हिरण्यधनु और रानी सुलेखा के स्नेहांचल से जनता सुखी व सम्पन्न थी l राजा राज्य का संचालन आमात्य (मंत्रि) परिषद की सहायता से करता था l निषादराज हिरण्यधनु को रानी सुलेखा द्वारा एक पुत्र प्राप्त हुआ जिसका नाम "अभिद्युम्न" रखा गया l प्राय: लोग उसे "अभय" नाम से बुलाते थे l पाँच वर्ष की आयु मेँ एकलव्य की शिक्षा की व्यवस्था कुलीय गुरूकुल मेँ की गई l बालपन से ही अस्त्र शस्त्र विद्या मेँ बालक की लगन और एकनिष्ठता को देखते हुए गुरू ने बालक का नाम "एकलव्य" संबोधित किया l एकलव्य के युवा होने पर उसका विवाह हिरण्यधनु ने अपने एक निषाद मित्र की कन्या सुणीता से करा दियाl एकलव्य धनुर्विद्या की उच्च शिक्षा प्राप्त करना चाहता था l उस समय धनुर्विद्या मेँ गुरू द्रोण की ख्याति थी l पर वे केवल ब्राह्मण तथा क्षत्रिय वर्ग को ही शिक्षा देते थे और शूद्रोँ को शिक्षा देने के कट्टर विरोधी थे l महाराज हिरण्यधनु ने एकलव्य को काफी समझाया कि द्रोण तुम्हे शिक्षा नहीँ देँगेl

पर एकलव्य ने पिता को मनाया कि उनकी शस्त्र विद्या से प्रभावित होकर आचार्य द्रोण स्वयं उसे अपना शिष्य बना लेँगेl पर एकलव्य का सोचना सही न था - द्रोण ने दुत्तकार कर उसे आश्रम से भगा दियाl एकलव्य हार मानने वालोँ मेँ से न था और बिना शस्त्र शिक्षा प्राप्त तिए वह घर वापस लौटना नहीँ चाहता थाl एकलव्य ने वन मेँ आचार्य द्रोण की एक प्रतिमा बनायी और धनुर्विद्या का अभ्यास करने लगाl शीघ्र ही उसने धनुर्विद्या मेँ निपुणता प्राप्त कर ली l एक बार द्रोणाचार्य अपने शिष्योँ और एक कुत्ते के साथ उसी वन मेँ आएl उस समय एकलव्य धनुर्विद्या का अभ्यास कर रहे थेl कुत्ता एकलव्य को देख भौकने लगाl एकलव्य ने कुत्ते के मुख को अपने बाणोँ से बंद कर दियाl कुत्ता द्रोण के पास भागाl द्रोण और शिष्य ऐसी श्रेष्ठ धनुर्विद्या देख आश्चर्य मेँ पड़ गएl वे उस महान धुनर्धर की खोज मेँ लग गए अचानक उन्हे एकलव्य दिखाई दिया जिस धनुर्विद्या को वे केवल क्षत्रिय और ब्राह्मणोँ तक सीमित रखना चाहते थे उसे शूद्रोँ के हाथोँ मेँ जाता देख उन्हेँ चिँता होने लगीl तभी उन्हे अर्जुन को संसार का सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बनाने के वचन की याद आयीl द्रोण ने एकलव्य से पूछा- तुमने यह धनुर्विद्या किससे सीखी?

एकलव्य- आपसे आचार्य एकलव्य ने द्रोण की मिट्टी की बनी प्रतिमा की ओर इशारा कियाl द्रोण ने एकलव्य से गुरू दक्षिणा मेँ एकलव्य के दाएँ हाथ का अगूंठा मांगाl एकलव्य ने अपना अगूंठा काट कर गुरु द्रोण को अर्पित कर दिया l कुमार एकलव्य अंगुष्ठ बलिदान के बाद पिता हिरण्यधनु के पास चला आता है l एकलव्य अपने साधनापूर्ण कौशल से बिना अंगूठे के धनुर्विद्या मेँ पुन: दक्षता प्राप्त कर लेता हैl आज के युग मेँ आयोजित होने वाली सभी तीरंदाजी प्रतियोगिताओँ मेँ अंगूठे का प्रयोग नहीँ होता है, अत: एकलव्य को आधुनिक तीरंदाजी का जनक कहना उचित होगाl पिता की मृत्यु के बाद वह श्रृंगबेर राज्य का शासक बनता हैl अमात्य परिषद की मंत्रणा से वह न केवल अपने राज्य का संचालन करता है, बल्कि निषाद भीलोँ की एक सशक्त सेना और नौसेना गठित करता है और अपने राज्य की सीमाओँ का विस्तार करता हैl इस बीच मथुरा नरेश कंस के वध के बाद, कंस के संबंधी मगध नरेश जरासन्ध शिशुपाल आदि के संयुक्त हमलोँ से भयभीत श्रीकृष्ण मथुरा से अपने भाई बलराम व बंधु बांधवोँ सहित पश्चिम की ओर भाग रहे थेl तब निषादराज एकलव्य ने श्रीकृष्ण की याचना पर तरस खाकर उन्हेँ सहारा व शरण दियाl ( अधिक जानकारी के लिए पेरियार ललई सिँह यादव द्वारा लिखित एकलव्य नामक पुस्तक पढ़ेँ ) एकलव्य की मदद से यादव सागर तट पर सुरक्षित भूभाग द्वारिका मेँ बस गएl यदुकुल ने धीरे धीरे अपनी शक्तियोँ का विस्तार किया और यादवोँ ने सुरापायी बलराम के नेतृत्व मेँ निषादराज की सीमाओँ पर कब्जा करना प्रारम्भ कर दियाl इसी बीच श्रीकृष्ण ने अपनी नारायणी सेना (प्रच्छन्न युद्ध की गुरिल्ला सेना) भी गठित कर ली थीl

अब यादवी सेना और निषादोँ के बीच युद्ध होना निश्चित थाl यादवी सेना के निरंतर हो रहे हमलोँ को दबाने के लिए एकलव्य ने सेनापति गिरिबीर के नेतृत्व मेँ कई बार सेनाएँ भेजीँl पर यादवी सेनाओँ का दबाव बढ़ता जाता हैl तब एकलव्य स्वयं सेना सहित यादवी सेना से युद्ध करने के लिए प्रस्थान करते हैँl बलराम और एकलव्य की सेना मेँ भयंकर युद्ध होता है और बलराम की पराजय होती हैl बलराम और यादवी सेना को पराजित कर एकलव्य विजय दुंदुभी बजाते हैँ, तभी पीछे से अचानक कृष्ण की नारायणी सेना जो कहीँ बाहर से युद्ध कर लौटी थी, एकलव्य पर टूट पड़ती है l एकलव्य इस अप्रत्याशित हमले से घिरकर रक्तरंजित हो जाते हैँ l ऐसी ही विकट स्थिति मेँ कृष्ण के हाथोँ महाबली एकलव्य का वध होता है l अपने महानायक एकलव्य की कृष्ण के हाथोँ मृत्यु से निषाद क्षुब्ध होते हैँ l यदुकुल पतन के बाद उन्हीँ मेँ से एक निषादवीर के द्वारा कृष्ण की हत्या कर दी गई l इतना ही नहीँ यादवी विनाश के बाद जब श्रीकृष्ण के निर्देशानुसार शेष बचे यदुवंशीय परिवारोँ को लेकर अर्जुन द्वारिका से हस्तिनापुर जा रहे थे तब बदले की भावना से निषाद-भीलोँ की सेना ने वन पथ मेँ घेरकर भीषण मारकाट मचाई और अर्जुन को पराजित कर पुरूषोँ को बन्दी बना लिया l साथ ही यदुवंश की सुन्दरियोँ-गोपियोँ का अपहरण कर लिया l

" भीलन लूटी गोपिका,

ओई अर्जुन ओई बाण ll"



सामाजिक संदेश

निषाद (केवट) जाति के सभी नवयुवा एवं वरिष्ठ युवागण द्वारा दूर संचार माध्यम, सामाजिक समूह, जातीय संगठनात्मक ढांचा के रूप में संगठित होकर निषाद समाज के सर्वांगीण विकास हेतु कृत सकंल्पीत होने का अभियान, जिसमे अधेड़ और प्रौढ़ वय तथा किशोर वय की भी भागीदारी का सक्रीय प्रयास, जिससे समाज की दशा एवं दिशा का निर्धारण हो सके।

कार्यक्षेत्र

मूलतः छत्तीसगढ़ के लगभग २७ जिलो में फैले तक़रीबन १०-१२ लाख की केवट आबादी को केंद्रित करते हुए, उनके सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक एवं राजनैतिक विकास हेतु कार्य योजना बनाना । अनन्य समसामयिक गतिविधियों का भव्य आयोजन, परंपरागत गुहा जयंती समारोह का आयोजन, युवा महोत्सव का विशाल आयोजन एवं प्रासंगिक जनजागृति के प्रयास का आयोजन इत्यादि करना है.

एक विजन

जिस निषाद ( केवट ) जाति के भक्त केवट के द्वारा पाद प्रक्षालन कर श्री राम जी को गंगा पर कराया गया, जिस भक्त शिरोमणि गुहा निषाद राज ने श्री राम जी की सेवा - सुश्रुवा की. फलस्वरूप प्रभु ने सखा कहकर सम्मानित किया, भरत ने गले लगाया और आदिकवि वाल्मीकि तथा कवि कुल शिरोमणि तुलसीदास जी ने जिनकी प्रशंसा की। जिस जाति की कन्या सत्यवती ( मत्स्यगंधा) के सुपुत्र वेद व्यास जी - स्वयं नारायण के अवतार एवं चारो वेद, अठ्ठारह पुराणों और छह शास्त्रो के रचियता थे. जिस जाति के राजकुमार एकलव्य अद्वितीय धनुर्धर रहे, जिन्होंने अंगूठे दानकर महान शिष्यत्व के उदाहरण बने. ऐसे वेद -वेदांग, विद्वान और कवि कुल प्रशंसित निषाद ( केवट ) जाति वर्तमान में पद - प्रतिष्ठा - वैभव के नैराश्य में विक्षिप्त है. यह अवश्य ही प्राचीन गौरव के अधिकारी है. यह तभी संभव है जब समग्र रूप से दृढ निश्चय होकर, कर्मठता के साथ सामाजिक एकता, शैक्षिक - बौद्धिक विकास, आर्थिक उन्नत होकर, राजनैतिक अवसरों का लाभ लेकर समाज के सर्व अंग को उन्नत बनाया जाय. जिससे निषाद समाज महर्षि वाल्मीकि के तथाकथित अभिशाप
(
मा निषाद ! प्रतिष्ठा त्वमगमः शाश्वती समाः ॥
यतकरौंच मिथुनात्मकम वधि काम मोहितं ॥
)
- हे निषाद ( बहेलिये ) ! तुमने काम में लींन क्रौंच पक्षी के जोड़े में से एक का वध कर दिया है, अतएव तुम्हे चिरकाल तक प्रतिष्ठा नही मिलेगी, को अप्रासंगिक बनाते हुए भारतवर्ष के आदि निवासी का सम्मान अधिकार और प्रतिष्ठा प्राप्त करे

हमारा मिशन

आगामी दस वर्षो के लक्ष्य -
१) सभी निषाद बालक - बालिकाओ के लिए न्यूनतम स्नातक स्तर की शिक्षा की सुनिश्चितता
२) योग्य विद्यार्थियों को उच्च शिक्षा का लाभ दिलाने विभिन्न सरकारी योजनाओ का सहयोग या अन्य मदो से व्यवस्था
३) नियमित पुरस्कार, प्रोत्साहन, प्रशिक्षण, सेमीनार योजना
४) जातीय स्तर पर रोजगारमूलक प्रशिक्षण कार्यक्रम की व्यवस्था
५) जातिगत सूचना , संचार एवं प्रसार की बेहतर व्यवस्था
६) जातीय संगठन के स्थानीय, बरगेहा, पचगएहैं, जिला व् प्रादेशिक की अधिक लोकतान्त्रिक स्वरुपिकरण
७) राज्य विधानसभाओ में प्रतिनिधित्व का प्रयास
८) विबिन्न राजनैतिक दलो में उच्च स्तरीय प्रतिनिधित्व का प्रयास
९) केंद्र व् राज्य प्रशासनिक सेवाओ में जाति के अधिकाधिक भागीदारी व् चयन के लिए विधिवत पहल
१०) तकनिकी क्षेत्रो में युवाओ की भागीदारी बढ़ाना
११) मतस्य पालन के पुश्तैनी क्षेत्रो में व्यापारिक नियंत्रण
१२) बेहतर आर्थिक स्थिति हेतु मिट व्ययिता पूर्ण जीवन चर्या का प्रचार - प्रसार करना.
१३) कुप्रथाओ, मड़ाई मेला, मारण पूजन , जावरा , शादियों, जन्मोत्सवों में मदिरापान व् फिजूल खर्ची पर नियंत्रण